Wednesday, May 21, 2025

गुरु गोबिंद सिंह और खालसा पंथ की स्थापना: साहस, समानता और एकता की अमर मिसाल

 

गुरु गोबिंद सिंह और खालसा पंथ की स्थापना: साहस, समानता और एकता की अमर मिसाल

भारतीय इतिहास में गुरु गोबिंद सिंह जी का नाम न केवल एक महान धर्मगुरु के रूप में, बल्कि एक साहसी योद्धा और समाज सुधारक के रूप में भी अमर है। 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना कर एक नई सामाजिक और धार्मिक क्रांति की शुरुआत की, जिसने सिख समुदाय की पहचान को पूरी तरह बदल दिया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी, पर समय के साथ सिख समुदाय में जातिगत भेद और सामाजिक भेदभाव भी आ गए थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस भेदभाव को मिटाने और सिखों को एक मजबूत, साहसी और न्यायप्रिय समुदाय बनाने का बीड़ा उठाया।

खालसा पंथ की स्थापना

30 मार्च 1699 को, आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद सिंह ने पांच सबसे निडर और समर्पित अनुयायियों को चुना और उन्हें ‘पंज प्यारे’ कहा। उन्होंने इन पांचों को खालसा (निर्दोष और शुद्ध) घोषित किया और सभी सिख पुरुषों को ‘सिंह’ उपनाम अपनाने का आदेश दिया, जिससे वे सभी शेर की तरह साहसी और बराबर बन गए।

इस क्रांतिकारी कदम से जाति-पांति के सभी बंधन टूट गए और सिख समुदाय में एकता, समानता और बहादुरी का नया युग शुरू हुआ।

सामाजिक और धार्मिक प्रभाव

खालसा पंथ ने सिखों को न केवल धार्मिक रूप से मजबूत बनाया, बल्कि उन्हें एक ऐसे योद्धा भी बनाया जो अत्याचार और अन्याय के खिलाफ डट कर लड़ सके। गुरु जी ने अपने अनुयायियों को पांच ‘ककार’ (केश, कंगा, करड़ा, कछेरा, और कृपाण) धारण करने का आदेश दिया, जो उनकी शौर्य और धर्म के प्रतीक हैं।

प्रेरणा और आधुनिक काल

आज भी खालसा पंथ सिखों के साहस, समर्पण, और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह की यह परंपरा हमें सिखाती है कि समानता, एकता और साहस से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। उनका जीवन संघर्ष और त्याग का एक महान उदाहरण है।

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