विषादयोग
(रामधारी सिंह दिनकर — रश्मिरथी से)
अब मैं अकेला हूँ,
अपनों से वंचित,
पर गर्व से भरा हृदय लिए,
सर्वस्व अपने कर्तव्य को दिया।
कहीं कोई सहारा नहीं,
कोई समझदार नहीं,
पर फिर भी मैं चलता हूँ,
निश्चय और साहस के साथ।
मेरे रक्त में बहती है अग्नि,
मेरे मन में जलती है ज्वाला,
मगर मैं बुझाता नहीं उसे,
बल्कि उसे शक्ति बनाता हूँ।
मेरी गति अविरल है,
मेरे कर्म अटल हैं,
यह जीवन मेरे लिए,
एक युद्धभूमि है,
जहाँ हर क्षण मुझे
जीत का गीत गाना है।
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