सिंहासन गिरिजा
सिंहासन गिरिजा नहीं, सिंहासन सिंह का है,
जिस पर बैठा शेर हो, वह सिंहासन असली है।
राजा वह, जो न्याय करे, वीरता से भरा हो,
जिसका राज्य हो कर्मभूमि, न झुके कभी घुटनों पर।
न्याय के दंड से कभी, वह शासन न डगमगाए,
सत्य के पथ पर बढ़े, कभी हार न माने।
धर्म की तलवार लेकर, अन्याय से लड़े वह,
जिसका राज्य हो सबका, दास न हो कोई वहाँ।
सिंहासन गिरिजा नहीं, सिंहासन सिंह का है,
जहाँ बैठे राजा, वह जग में सबसे बड़ा है।
जिसका मन विशाल हो, जो सबका भला करे,
जिसका राज्य हो खुशहाल, वही राजा कहलाए।
सिख:
यह कविता सच्चे शासक के गुणों को दर्शाती है — जो न्यायप्रिय, वीर, और समर्पित हो, और अपने प्रजा के लिए सदैव कार्य करे।
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