Wednesday, May 21, 2025

हनुमान चालीसा

 

हनुमान चालीसा

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस विकार ॥


चौपाईयाँ

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥

शंकर सुवन केसरीनंदन ।
तेज प्रताप महा जग वंदन ॥

विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥

सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरी लंक जरावा ॥

भीम रूप धरी असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥

लाय संजीवन लखन जियाए ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए ॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिकपाल जहाँ ते ।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं ॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक ते काँपै ॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥

साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥

राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

अंत काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥

संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥


हनुमान चालीसा का सरल अर्थ (संक्षिप्त)

  • गुरु के चरणों की धूल से मन की अशुद्धि दूर कर मैं श्री राम के पवित्र और निर्मल गुणों का वर्णन करता हूँ।

  • मैं अपने को बुद्धिहीन समझता हूँ, इसलिए पवनसुत हनुमान से बुद्धि, शक्ति और ज्ञान देने की प्रार्थना करता हूँ।

  • जय हो हनुमान जो ज्ञान और गुणों के सागर हैं। जो पूरे ब्रह्मांड में प्रसिद्ध हैं।

  • वे राम के दूत और असीम बल के स्वामी हैं। वे अंजनी के पुत्र और पवन के संतान हैं।

  • वे महावीर, वीर, और कुमति को दूर करने वाले मित्र हैं।

  • उन्होंने सीता की खोज की, लंका जलाई और रावण के वध में राम की सहायता की।

  • वे संकटों को हरने वाले, रोगों को दूर करने वाले और भक्तों की रक्षा करने वाले हैं।

  • जो लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, उनके सभी दुख और संकट दूर होते हैं।

  • हनुमान जी की कृपा से जीवन में सुख-शांति आती है और भगवान राम की भक्ति होती है।

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